What is Immunity System?

बीमारियों की उन्नति और प्रतिरोधक क्षमता की अवनति

हम हमेशा एक बात करते हैं कि लगभग 100 वर्ष पहले इतनी बीमारियाँ नहीं देखी जाती थीं| पुराने समय के लोग बहुत स्वस्थ जीवन जीते थे| उसके कारण भी बहुत सारे थे जैसे उस समय मोबाइल और उससे निकलने वाली विकिरणें नहीं हुआ करती थीं, वो लोग इतनी अधिक दवाइयाँ नहीं खाते थे, वातावरण स्वच्छ था, हवा प्रदूषित नहीं थी, Reverse Osmosis नहीं था, खान-पान शुद्ध था और भी कई कारण थे| लेकिन यदि हम आज की बात करें तो जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी (Technology) व सुविधाएँ (Luxury) बढ़ रही हैं वैसे-वैसे बीमारियाँ भी बढ़ती जा रही हैं| पहले हम सुनते थे कि बीमारी के जो कारण थे वो बाहरी कारण थे किन्तु अब बीमारी हमारे अन्दर से ही जन्म ले रही है|

जैसा कि हमने पहले भी जाना है कि प्रतिपल, जैसे हम सांस लेते हैं, खाते हैं, पीते हैं, किसी वस्तु को छूते हैं तो लाखों कीटाणु, जीवाणु, रोगाणु आदि हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं| इन सबका प्रतिरोध करने के लिए हमारे शरीर में प्रतिपल एक प्रणाली कार्य करती है जिसे हम प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) कहते हैं| एक सवाल – हमारी बीमारी से लड़ने का सबसे अच्छा उपाय क्या है, आज के समय की दवाइयाँ या हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता? जवाब – इसपर आप स्वयं विचार कीजिये|

ये रोगाणु, जीवाणु, कीटाणु, विषैले तत्व आदि जब प्रतिपल हमारे शरीर पर हमला करते हैं तो हमारे शरीर में एक ऐसी प्रणाली है तो 24 x 7 अर्थात् प्रतिपल इनसे हमारी रक्षा करती है| इस प्रणाली को ही प्रतिरोशक क्षमता कहते हैं| किन्तु जब हम हमारी इस प्रतिरोधक क्षमता को ही दुर्बल कर देते हैं तो बीमारियाँ हमें तुरंत घेर लेती हैं|

प्रतिरोधक क्षमता को दुर्बल करने वाले कारक

  • अत्यधिक तनाव (Chronic Stress):

तनाव एक ऐसी समस्या है जो आज के समय में सभी बीमारियों से अधिक भयानक है| हमें बहुत सारी बीमारियाँ इसी वजह से होती हैं और तनाव जब अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो वो अवसाद में परिवर्तित हो जाता है और अवसाद में व्यक्ति अपना जीवन भी समाप्त कर लेता है| ऐसे कई उदहारण आज हमारे सामने हैं|

  • बाहर का खाना (Junk Food):

बाहर का खाना अच्छा नहीं होता, ये हम बहुत बार सुनते हैं किन्तु ऐसा क्यों है? खाने पीने की बहार मिलने वाली अधिकतर वस्तुओं की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती और उनमे कम गुणवत्ता वाले सामन उपयोग किये जाते हैं| इस वजह से हमें वो पोषण नहीं मिल पाता जो मिलना चाहिए| यही कारण है कि हमारी कोशिकाओं का अच्छे से विकास नहीं हो पाता और हमारी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है|

  • अत्यधिक दवाइयों का सेवन (Synthetic Drugs):

ये दवाइयाँ कृत्रिम रसायनों से प्रयोगशाला में बनाई जाती हैं| इन दवाइयों के बहुत सारे दुष्प्रभाव शरीर में देखने को मिलते हैं| इन दवाइयों का सेवन करने से हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कार्य करने का अवसर नहीं मिलता और हमारी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है|

  • मद्यपान और धूम्रपान (Drinking and Smoking):

ये ऐसे व्यसन हैं जो हमारे शरीर में जाकर ऐसे विषैले पदार्थों को बढ़ावा देते हैं जिनकी हमारे शरीर को आदत पड़ जाती है| ये हमारे शरीर में जाकर हमारे फेंफडों, यकृत, ह्रदय, आंतें आदि को बहुत क्षति पहुंचाते हैं| इससे हमारी कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और उनकी रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है| ऐसे लोगों को फेफड़ों के कर्क रोग (Lung Cancer) तक की समस्या आ जाती है|

  • प्रदूषित वातावरण (Polluted Environment):

आज का वातावरण इतना प्रदूषित हो चुका है कि पूरी दुनिया में उसको बचाने के लिए बहुत सारे उपक्रम चल रहे हैं| आज वातावरण में जहाँ कारखानों से धूँआ निकल रहा है, गाड़ियों का धूँआ निकल रहा है, AC से निकलने वाली गैसेस इत्यादि यही वजह कि पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है| हम भी इसी वातावरण में ही रहते हैं और सांस लेते हैं जिस कारण हमारी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है|

  • कम नींद लेना (Inadequate Sleep):

आज के समय में जहाँ प्रौद्योगिकी बढ़ती जा रही है हमारी नींद भी कम होती जा रही है| बच्चे हों या बड़े, लगभग सभी रात को देर तक मोबाइल में या टीवी में लगे रहते हैं जिसकी वजह से रात को देर से सोते हैं और सुबह देर तक सोते रहते हैं जिससे हमारी जैविक घड़ी (Biological Clock) बिगड़ जाती है और जल्दी उठेंगे तो नींद पूरी नहीं होगी| ये एक बहुत बड़ा कारण है हमारी प्रतिरोधक क्षमता के कम होने का| इसलिए सोना बहुत आवशक है| 7-8 घंटे की नींद लेना बहुत आवशक है| जब हम सोते हैं तो हमारा शरीर स्वयं की मरम्मत करता है|

  • आलस (Inactive People):

यदि हम आलसी हैं और अधिक शारीरक श्रम नहीं करते हैं तो हमारे शरीर के सारे अंग भी उसी प्रकार के कार्य करेंगे| हमारा उपापचय (Metabolism) ख़राब हो जायेगा, खाना अच्छे से पचेगा नहीं और जो पोषण हमारी कोशिकाओं को चाहिए वो नहीं मिलेगा और हमारी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाएगी|

  • पानी की कमी (Dehydration):

हम सभी जानते हैं कि मानव शरीर 70% पानी से बना होता है और पानी प्राकृतिक रूप से हमारे शारीर की सफ़ाई करता है| इसलिए जब हम पानी अधिक पीते हैं तो विषाक्त पदार्थों (Toxins) को बहार निकालने का काम पानी करता है| जब हम घर में भी सफ़ाई करते हैं तो पानी का उपयोग करते हैं, बर्तन धोने में भी पानी का उपयोग करते हैं क्यूंकि पानी ऐसी वस्तु है जो कीटाणुओं को सोख लेता है और उनको बाहर निकालने में सहायता करता है| तो जब हम पानी कम पीते हैं तो हमारे शरीर की अच्छे से सफ़ाई नहीं हो पाती तो इस वजह से भी हमारी प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है|

  • कीटनाशक (Pesticides and Insecticides):

आज के समय में फसल की मात्रा व गुणवत्ता बढ़ाने के चक्कर में बहुत सारे अकार्बनिक रसायनों का फलों और सब्ज़ियों में उपयोग किया जाता है| ये गुणवत्ता बढ़ाते तो नहीं हैं अपितु हमारे शरीर में जाकर जमा हो जाते हैं और विषाक्त पदार्थों में बदल जाते हैं| बहुत सारे कीटनाशक हमारे खाने पर छिड़के जाते हैं जो कीटों को मारने के साथ-साथ हमारे शरीर पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं| इन सबकी वजह से भी हमारी प्रतिरोधक क्षमता निर्बल हो जाती है|

  • विकिरण (Mobile Radiation and Sun Exposure):

आज के समय में जहां हर एक व्यक्ति के पास मोबाइल फ़ोन है और संचार की बढ़ती आवश्यकताओं को देखते हुए मोबाइल से निकलने वाली विकिरणें बहुत अधिक बढ़ गई हैं| जब हमारा शरीर इन विकिरणों के सम्पर्क में आता है तो मुक्त मूलक (Free Radical) बहुत बनते हैं| कुछ संस्थाओं ने अपने अनुसन्धान में पाया है कि मोबाइल विकिरणों के सम्पर्क में अधिक समय तक रहने से लम्बे समय में कर्क रोग (Cancer) तक होने की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है| इसलिए दिन में ना सही लेकिन रात को सोते समय मोबाइल को जितना हो सके अपने से दूर रख कर सोयें| इन विकिरणों से बनने वाले मुक्त मूलक भी हमारी प्रतिरोधक क्षमता को निर्बल करते है|

  • विषाक्त पदार्थों का संचय (Accumulation of Toxins):

विषाक्त पदार्थों के जाने से हमारे शरीर में बीमारियाँ होती हैं| ऐसे में जब ये विषाक्त पदार्थ हमारे शरीर से बाहर नहीं निकल पाते तो हमें कई छोटी छोटी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे चेहरे पर मुंहासे हो जाना, मुँह से बदबू आना, जीभ पर एक श्वेत परत का जम जाना आदि| तो अब हमारे पास दो उपाय हैं, या तो हम इन विषाक्त पदार्थों को समाप्त कर दें या फिर अपनी प्रतिरोधक क्षमता को इतना बढ़ा लें कि ये विषाक्त पदार्थ हमारे शरीर में कुछ असर ही नहीं कर पायें| अब इन विषाक्त पदार्थों को कम करना हमारे हाथ में नहीं है लेकिन हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं|

अपने शरीर को सुरक्षित कैसे रखें?

इसके लिए हम अपने दैनिक जीवन में कुछ ऎसी चीज़ें ले सकते हैं जो हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं| जब आप किसी से पूछते हैं कि आप चिकित्सक के पास कब जाते हैं तो लोगों का जवाब यही आता है कि जब हम बीमार होते हैं तब किसी चिकित्सक के पास जाते हैं| ऐसा कोई नहीं कहता कि मैं चिकित्सक के सामने से निकल रहा था तो सोच क्यों ना 2-4 इंजेक्शन लगवाता चलूँ! ऐसा कोई नहीं करता| तो जब हम बीमार होते हैं तो चिकित्सक के पास जाते हैं, तभी दवाइयाँ खाते हैं| इन सबसे बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं? हम कुछ nutraceuticals (पोषक तत्वों से निर्मित औषधियाँ) [ये दो शब्दों से मिलकर बना है: Nutrients (पोषक तत्व) + Pharmaceuticals (औषधियाँ)] ले सकते हैं, कुछ पूरक आहार (Dietary Supplements) ले सकते हैं, आयुर्वेदिक दवाइयाँ ले सकते हैं जिनका कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होता और जो हमें बीमार होने से पहले लेनी हैं| आयुर्वेद हमेशा से ही स्वास्थ्य कल्याण के कार्य करता है|

मुक्त मूलक (Free Radical) और ऑक्सीडेटिव तनाव (Oxidative Stress)

सबसे पहले इन दोनों को समझते हैं कि ये क्या होते हैं?

मुक्त मूलक

हमारा शरीर बहुत सारी चीजों को मिलाकर बनता है| जैसे एक भवन बनाते हैं तो उसमें बहुत सारी ईंटों को सीमेंट जोड़ते हैं तो एक कमरा बनता है, एक रसोईघर बनता है और इन सब से मिलकर पूरा एक भवन तैयार हो जाता है| तो जैसे एक भवन की सबसे छोटी इकाई ईंट होती है, वैसे ही हमारे शारीर की सबसे छोटी इकाई परमाणु (Atom) होता है| जब बहुत सारे परमाणु मिल जाते हैं तो एक अणु (Molecule) बनता है, बहुत सारे अणु मिलने पर एक कोशिका (Cell) बनती है, बहुत सारी कोशिकाओं से ऊतक (Tissue) बनते हैं, इन ऊतकों से मिलकर अंग (Organ) बनते हैं जैसे यकृत, अग्नाशय, गुर्दे आदि, ये सब जब जुड़ जाते हैं तो एक प्रणाली (Organ System) बनती है और जब सब जुड़ जाते हैं तब बनता है हमारा शरीर अर्थात् हमारा शरीर लाखों-करोड़ों परमाणुओं से मिलकर बना है|

एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख अखबार के अनुसार हमारा शरीर लगभग 7,000,000,000,000,000,000,000,000,000 परमाणुओं से मिलकर बना है|

परमाणु क्या होता है? एक परमाणु, प्रोटॉन (Proton) और न्यूट्रॉन (Neutron) से बने एक नाभिक (Nucleus) से बना होता है और एक बाहरी परत युग्मित इलेक्ट्रॉनों (Paired Electrons) से बनी होती है जहाँ ये घूमते रहते हैं| जब तक ये इलेक्ट्रॉन अपने युग्म में रहते हैं तब तक ये स्वस्थ रहते हैं, किन्तु जब मुक्त मूलक इनकी जोड़ी को तोड़ देते हैं तो इनकी एक श्रंखला बन जाती है जो हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक है| हर समय हमारे शरीर में मुक्त मूलक बनते रहते हैं जैसे जब हम कोई शारीरिक श्रम करते हैं, जब हम खाना खाते हैं और वो पचता है तो भी मुक्त मूलक बनते हैं, हमारे शरीर में होने वाली रासायनिक क्रियाओं से भी मुक्त मूलक बनते हैं, वायु प्रदूषण से, मोबाइल की विकिरणों से, धूम्रपान करने से, मद्यपान करने से और भी ऐसे कई कारण हैं जिनसे मुक्त मूलक बनते हैं| अब बात करते हैं कि ये मुक्त मूलक होते क्या हैं?

जब किसी परमाणु की बाहरी सतह में घूमने वाले युग्मित इलेक्ट्रॉन का युग्म टूट जाता है अर्थात् इलेक्ट्रॉन अकेला रह जाता है तो परमाणु की ऐसी स्तिथि को मुक्त मूलक कहते हैं| ये मुक्त मूलक दुसरे स्वस्थ परमाणु के पास जाता है और उसका एक इलेक्ट्रॉन छीन लेता है| इस प्रकार मुक्त मूलकों की एक श्रंखला बन जाती है और जब ये श्रंखला बहुत अधिक मात्रा में बनने लगती है उस चक्र को, उस प्रक्रिया को ऑक्सीडेटिव तनाव कहते हैं|

हमारे शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव बहुत सारी बीमारियों का कारण है| कर्क रोग, गुर्दे की समस्या, त्वचा से सम्बंधित समस्याएँ, मधुमेह, जोड़ों में दर्द होना, मस्तिस्क से सम्बंधित समस्याएँ, ह्रदय रोग और भी बहुत सारी समस्याओं का कारण ऑक्सीडेटिव तनाव ही होता है| इसे एक उदहारण से समझते हैं, जब हम एक सेब को काटते हैं और उसे थोड़ी देर के लिए खुला छोड़ देते हैं तो कटा हुआ सेब लाल पड़ जाता है| अब उस कटे हुए सेब के एक तरफ़ नींबू लगा देते हैं| अब हम क्या देखते हैं कि जिस तरफ़ हमने नींबू लगाया था वो बहुत समय तक ताज़ा बना रहेगा जबकि दूसरी तरफ़ वाला सेब लाल पड़ जायेगा| ऐसा क्यों होता है? क्योंकि नींबू में विटामिन C होता है जो कि एक शक्तिशाली एन्टी-ऑक्सीडेंट है और ये मुक्त मूलकों को बनने नहीं देता|

यही प्रक्रिया हमारे शरीर में भी होती है| जब हम युवा होते हैं तो हमारी त्वचा बहुत अच्छी और चमकदार होती है किन्तु जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है तो हमरी त्वचा में से चमक समाप्त होने लगती है, उसमे झुर्रियां पड़ने लग जाती हैं| ऐसा क्यों होता है? क्योंकि हमारे शरीर में प्रतिपल मुक्त मूलकों का आक्रमण होता है जिससे हमें ऑक्सीडेटिव तनाव होता है और समय के साथ हमारी प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है|

ऑक्सीडेटिव तनाव के दुष्प्रभाव

जब हमारे शरीर में मुक्त मूलक अधिक बनने लगते हैं तो ऑक्सीडेटिव तनाव अधिक हो जाता है और इससे हमारे शरीर की बीमारियों से लड़ने वाली प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है| जब ये प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है तो बहुत छोटी छोटी बीमारियाँ होने लगती हैं जैसे सर्दी, खांसी, एलर्जी, फ्लू, संक्रमण, शारीरिक दुर्बलता इत्यादि| जब हम इन छोटी छोटी बीमारियों पर ध्यान नहीं देते तो यही बीमारियाँ आगे चलकर कर्क रोग, हृदयाघात, गठिया, मस्तिष्क में क्षति, पक्षाघात, मधुमेह आदि में परिवर्तित हो जाती हैं| हमने कभी ये नहीं सुना होगा कि रात तक तो ठीक था सुबह उठा तो कर्क रोग हो गया| ये बीमारियाँ एकदम से नहीं होती, हमारा शरीर हमें चेतावनी देता है| ये एक लम्बी प्रक्रिया है और जब हम इसके लक्षणों पर ध्यान नहीं देते तो आगे चलकर हमें ये बीमारियाँ हो जाती हैं| इन बीमारियों से बचाव के तात्कालिक उपाय जैसे दवाइयाँ, एन्टीबायोटिक, कीमोथेरेपी, शल्य चिकित्सा, अस्पताल में लम्बे समय तक भर्ती होना आदि उपलब्ध हैं किन्तु ये बहुत अधिक हानिकारक, महंगे हैं और ये स्थायी भी नहीं हैं|

जब हम कोई नया कंप्यूटर क्रय करते हैं तो सबसे पहले उसमें एन्टी-वायरस डालते हैं, क्यों? क्योंकि हमें पता है कि आगे चलकर इसपर कोई वायरस आक्रमण कर सकता है किन्तु अपने शरीर के लिए एन्टी-ऑक्सीडेंट हम कब लेते हैं जब हमारे शरीर में कोई परेशानी हो जाती है| इसलिए जब एन्टी-ऑक्सीडेंट को हम अपने दैनिक जीवन में उपयोग में लेना शुरू करते हैं तो ये ऑक्सीडेटिव तनाव को बेअसर करने में सहायता करता है|

एन्टी-ऑक्सीडेंट काम कैसे करता है?

एन्टी-ऑक्सीडेंट के पास बहुत सारे मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं| आपको याद होगा हमने बात की थी मुक्त मूलक की कि मुक्त मूलक कब बनता है जब किसी परमाणु के इलेक्ट्रॉनों का कोई युग्म टूट जाता है, तो एन्टी-ऑक्सीडेंट अपना एक इलेक्ट्रॉन उस मुक्त मूलक को देकर उसके युग्म को पूरा कर देता है| अब कुछ लोग कहते हैं कि वो तो घर का बना खाना ही खाते हैं फिर उन्हें ये परेशानियाँ कैसे हो सकती हैं? तो याद रखिये आपके खाने में एक दिन में 3-4 तरह के ताज़ा फल होने चाहिए, ताज़ी हरी सब्जियाँ अवश्य होनी चाहिए| इसकी आदत डालिए| ये आपको अच्छी मात्रा में एन्टी-ऑक्सीडेंट देते हैं|

ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाव कैसे करें?

आज के समय में बहुत कम लोग ऐसे हैं को अपने खाने में फल और हरी सब्ज़ियों का भरपूर मात्रा में उपयोग करते है| अधिकतर लोग ऐसे हैं जो अपने दैनिक जीवन में फल और हरी सब्ज़ी अधिक नहीं ले पाते या जीवनशैली ऎसी है कि उन्हें लाने का और खाने का समय ही नहीं मिलता| तो क्या करें? अब हम प्रदूषित वातावरण से बचने के लिए तुलसी का पौधा लगा कर तो घूम नहीं सकते| तो क्या कर सकते हैं? हम अपनी दैनिक आवश्यकता की ORAC मूल्य की पूर्ति एक पूरक आहार को लेकर कर सकते हैं|

O.R.A.C. (Oxygen Radical Absorbing Capacity) मूल्य क्या है?

ORAC मूल्य एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त, प्रमाणित, पेटेंट मानक प्रणाली है और यह लगातार अनुसंधान के आधार पर विकसित की जाती है। यह भोजन की एन्टी-ऑक्सीडेंट क्षमता के स्तर को इंगित करता है। जैसे हम दूध को लीटर में नापते हैं, चावल को किलोग्राम में नापते हैं, वैसे ही हम एन्टी-ऑक्सीडेंट को ORAC मूल्य में नापते हैं| जैसे हम बचपन में एक बात सुनते थे, An apple a day keeps the doctor away अर्थात् प्रतिदिन एक सेब खाने से डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी| ऐसा क्यों कहा जाता था? क्योंकि उस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन और US FDA का कहना था कि एक ताज़ा सेब यदि छिलके सहित खायेंगे तो उससे लगभग 3000 ORAC मूल्य मिलते हैं और प्रतिदिन मुक्त मूलकों को समाप्त करने के लिए उस समय हमें 3000-5000 ORAC मूल्य की आवश्यकता होती थी क्योंकि उस समय इतना प्रदुषण नहीं था, मोबाइल की विकिरणों का प्रभाव नहीं था| आज के समय में वायु प्रदुषण बहुत अधिक बढ़ गया है, मोबाइल की विकिरणें बढ़ गयीं हैं कि अब ये कहा जाता है कि यदि आप 10000 से कम ORAC मूल्य ले रहे हैं तो उससे काम नहीं चलेगा, यदि आप 10000-20000 ORAC मूल्य ले रहे हैं तो ठीक है और यदि आप 20000 से अधिक ORAC मूल्य ले रहे हैं तो ही उसे बहुत अच्छा माना जायेगा|

ON & ON 9E5 एक ऐसा ही उत्पाद है जिसका एक sachet जब हम पानी में मिला कर पीते हैं तो वो हमें 30000 से भी अधिक ORAC मूल्य देता है अर्थात् इसके एक लीटर में 9,00,000 ORAC मूल्य प्राप्त होते हैं| 30000 ORAC मूल्य का अर्थ हुआ कि 10 ताज़ा सेब खाने के बराबर| इतनी अधिक ORAC मूल्य वाला और कोई उत्पाद आज के बाज़ार में उपलब्ध नहीं है| एक बार मैं एक व्यक्ति से बात कर रहा था तो उस व्यक्ति ने कहा कि एक कम्पनी 1,00,000 ORAC मूल्य का उत्पाद बनाती है किन्तु जब उसने 9,00,000 ORAC मूल्य वाला उत्पाद देखा तो वो बहुत प्रभावित हुआ| तब मैंने उस व्यक्ति से कहा कि बाज़ार में जो कम्पनी 1,00,000 या 2,00,000 ORAC मूल्य का उत्पाद बना रही हैं, उतना तो ये कम्पनी छोड़ देती है| जी हाँ, ON & ON 9E5 में वास्तव में 10,00,000 से अधिक (10,74,880) ORAC मूल्य है और ये मैं नहीं कहता, ये कहना है Brunswick Laboratory, USA का जो कि दुनिया की सबसे भरोमंद जाँचशालाओं में से एक है|

ON & ON 9E5 क्या है और इसके लाभ क्या हैं?

9E5 में 13 तरह के बेरी फलों से बना एक महाशक्तिशाली एन्टी-ऑक्सीडेंट है जिसमें आँवला और ग्वारपाठा भी है| आइये इनके बारे में जानते हैं:

  • अकाई बेरी (Acai Berry):

ये हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बहुत अच्छा रखती है, हमारे हृदय को भी स्वस्थ रखने में सहयोग करती है और इसमें बहुत अधिक मात्रा में एन्टी-ऑक्सीडेंट पाया जाता है|

  • गोजी बेरी (Goji Berry):

जैसा कि नीचे दी गई तस्वीर में आप देख सकते हैं कि इन श्रीमान् ने जीवनभर गोजी बेरी खाई और उनकी ऊम्र बहुत अच्छी थी| गोजी बेरी खाने से ऊम्र बढ़ती है, ये शुक्राणुओं के निर्माण को भी बढ़ाती है, कर्क रोक की कोशिकाओं को कम करने में सहयोग करती है, कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी के बाद जो शरीर में विकिरणों का प्रभाव रह जाता है उसे कम करने में सहयोग करती है, आँखों से सम्बंधित समस्याओं में भी लाभकारी है, उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में भी सहायता करती है, यदि किसी का मधुमेह का स्तर बहुत अधिक (250-300 या इससे अधिक) है तो इस उत्पाद को नहीं लेना चाहिए|

  • नोनी (Noni):

जिन जीवाणुओं की वजह से दस्त या मूत्राशय से सम्बंधित समस्याएँ होती हैं उन्हें बेअसर करती है, कर्क रोग की कोशिकाओं की बढ़त को कम करती है और कई अनुसंधानों में पाया गया है कि ये ह्रदय से सम्बंधित रोगों में भी बहुत लाभकारी है|

  • ग्वारपाठा (Aloe Vera):

इसके बारे में तो हम बचपन से बहुत सारी बातें सुनते आये हैं| बहुत सारे लोग तो अपने घरों में भी इसे उगाते हैं| ग्वारपाठा लगभग 200 तरह की बीमारियों पे काम करता है, इसलिए इसे एक वरदान भी कहा जाता है| ये कर्क रोग, मधुमेह, व्रण (Ulcer) आदि में बहुत उपयोगी है|

  • स्ट्रॉबेरी (Strawberry) :

हृदयाघात या उससे सम्बंधित समस्याओं में सहायता करती है, लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में सहायता करती है जिससे रुधिरवर्णिका (Haemoglobin) बढ़ता है और ख़राब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी सहायता करती है|

  • जामुन (Blackberry):

ये हमें विटामिन B, C, K, कैल्शियम, प्रोटीन, लोह तत्व (Iron) और जस्ता (Zinc) देता है|

  • रसभरी (Raspberry):

ये रेशे यूक्त आहार का एक बहुत बड़ा स्त्रोत है और एक बहुत बढ़िया एन्टी-ऑक्सीडेंट है| हानिकारक मुक्त मूलकों की सफ़ाई करती है|

  • काले अंगूर/किशमिश (Black Currant):

काले अंगूर गठिया (Rheumatism, Arthritis और Gout), जोड़ों के दर्द  आदि में सहायता करते हैं| ये रक्त को शुद्ध करके उसमें से कोलेस्ट्रॉल, अपशिष्ट पदार्थों और विषाक्त पदार्थों को बहार निकलने में सहायता करते हैं|

  • ब्लू बेरी (Blueberry):

युवा बनाये रखने में सहयोग करती है, कर्क रोग की कोशिकाओं की रोकथाम करने में सहायक है, स्मृति को तीव्र करती है, एकाग्रता बनाए रखने में भी सहायक है| बाज़ार में बहुत सारी cream उपलब्ध हैं जो कहती हैं कि उनको लगाने से आपकी त्वचा एकदम से युवा हो जाएगी, तो याद रखिये कि cream लगाने से बेहतर है कि इन बेरी को खाया जाये जिससे ये आपके अन्दर के अंगों को ठीक रखे और उसका असर आपकी त्वचा पर अपने आप दिखना शुरू हो जायेगा|

  • चेरी (Cherry):

इसमें मेलाटोनिन (Melatonin) नाम का एक बहुत शक्तिशाली एन्टी-ऑक्सीडेंट होता है जो कि इसके साथ में उपयोग में किये गए दुसरे एन्टी-ऑक्सीडेंट की कार्यक्षमता को बढ़ा देता है| जाँच करने पर ये सिद्ध हुआ है कि ये विटामिन E की तुलना में दो गुना अधिक सक्रिय कार्य करती है| ये मस्तिष्क की तन्त्रकोशिकाओं (Neurons) को भी सहज करने में सहायक है|

  • क्रैनबेरी (Cranberry):

इसका अस्थमा पर बहुत अच्छा प्रभाव देखा गया है| मूत्र पथ संक्रमण (Urinary Tract Infection) को कम करने में सहायक है, peptic ulcer में भी अच्छे से कार्य करती है|

  • लाल अंगूर/किशमिश (Red Currant):

यदि किसी का खाना ठीक ढंग से नहीं पचता, पाचन क्रिया दुर्बल है, कब्ज़ की समस्या है, मांसपेशियों में बहुत अधिक दर्द रहता है तो उस स्तिथि में ये बेरी बहुत अच्छा कार्य करती है| ये रक्तचाप को भी नियंत्रित करने में सहायक है|

  • एल्डरबेरी (Elderberry):

इसके अन्दर विषाणुरोधी गुण होते हैं| ये फ्लू, सर्दी, खाँसी, ज़ुकाम, कफ़ आदि को नियंत्रित करने में भी सहायक है| ये मुँह के छाले, टॉन्सिल्स और गले की खराश को भी ठीक करने में सहायक है|

  • आँवला:

हम सब जानते हैं कि आँवला विटामिन C का एक बहुत महत्वपूर्ण स्त्रोत है| विटामिन C की हमारे शरीर में बहुत बड़ी भूमिका है इतनी कि जितनी हम सोच भी नहीं सकते| ये शरीर के सारे अंगो को सुद्रढ़ करता है और प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ता है|

महिलाओं के लिए विशेषतः – महिलाओं को ये समझना चाहिए कि साल में 4-5 महीने तो इसको लेना ही है| महिलाओं के लिए ये एक बहुत आवश्यक उत्पाद है| एक सर्वेक्षण के अनुसार शहरों में रहने वाली हर 10 में से 1 महिला को कर्क रोग और ऐसी ही बहुत सारी बीमारियाँ होने की संभावना है|


ON & ON 9E5 एक पूर्ण रूप से आयुर्वेदिक आहार है जिसका कार्य हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है| इसी प्रकार हमारा एक और उत्पाद है जिसके बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं जिसका नाम है कवच्प्राश| ये भी हमारे शरीर की रक्षा कर उसकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ने में सहायता करता है| इनके बारे में अधिक जानने के लिए हमसे सम्पर्क करें और ऐसे ही अन्य आयुर्वेदिक आहार और उत्पादों के बारे में सही एवं प्रमाणित जानकारी पाने के लिए हमारे इस Blog को सब्सक्राइब करें| धन्यवाद|

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