The IMMUNITY BUILDER - KAVACHPRAASH

क्या हम उतने ही स्वस्थ हैं जितने हमारे पूर्वज हुआ करते थे?

आज से 100-200 वर्षों पहले लोगों को इतनी बीमारियाँ नहीं होती थीं| लोग 100 वर्षों तक बड़े आराम से जीते थे| पहले मधुमेह (Diabetes), उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure), कर्क रोग (Cancer), दिल का दौरा (Heart Attack) पड़ना, सांस की बीमारी (Asthma) आदि ऐसी बीमारियाँ नहीं देखी जाती थीं और देखने में आती भी थीं तो ना के बराबर| आजकल ये बीमारियाँ होना आम बात है| आजकल बड़ों के साथ-साथ छोटे बच्चों को भी मधुमेह (Diabetes) हो रहा है, दिल का दौरा (Heart Attack) पड़ रहा है| ऐसा क्यों है?

ऐसा इसलिए है क्यूंकि कहीं ना कहीं हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity System) निर्बल है और जब हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तब जाकर हमें कोई बीमारी होती है| जैसा कि हम सब जानते हैं प्रतिपल जब हम सांस लेते हैं, खाना खाते हैं या किसी वस्तु को छूते हैं तो लाखों कीटाणु (Bacteria) और विषाणु (Virus) हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं| आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे पेट में इतने कीटाणु होते हैं कि अगर उनको अलग से निकल कर उनका वज़न किया जाए तो उनका कुल वज़न 1 kg के लगभग होगा| इसका मतलब ये नहीं कि ये कीटाणु ख़राब हैं| ये कीटाणु दो प्रकार के होते हैं एक अच्छे और दुसरे बुरे| अच्छे कीटाणुओं के बिना हम रह भी नहीं सकते| जब हमारे शरीर में बुरे कीटाणुओं की संख्या बढ़ जाती है तो हमें बीमारियाँ होनी शुरू हो जाती हैं|

हमें रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity System) की आवश्यकता क्यों है?

हम जानते हैं कि प्रतिपल बहुत सारे कीटाणु (Bacteria), विषाणु (Virus), रोगाणु (Microbes) और विषाक्त पदार्थ (Toxins) हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं| इनसे लड़ने के लिए एक प्रणाली (system) है तो प्रतिपल इससे लड़ने का कार्य करती है जिसे हम रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं| इसे ऐसे समझते हैं – जैसे कुछ दिन रखने पर हवा लगने पर एक मृत शरीर खराब होने लगता है लेकिन वहीँ वो हवा हमारे ऊपर कोई प्रभाव नहीं डालती| ऐसा इसलिए है क्यूंकि एक प्रणाली है जो प्रतिपल काम कर रही है और बीमारियों से लड़ने में हमारी सहायता करती है| अब जब हम उस प्रणाली को निर्बल कर देंगे तब हमें बीमारियाँ होती हैं|

कारण: जिनसे रोग प्रतिरोधक क्षमता निर्बल होती है

  • अत्यधिक तनाव (Chronic Stress):

   जब हम बहुत अधिक तनाव अपने ऊपर ले लेते हैं तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है|

  • बाहर का खाना (Junk Food):

    बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिनका दिनभर ही बाहर का खाना होता है| जब हम बाहर का खाना खाते हैं तो हमें वो पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता जो मिलना चाहिए| जब हमारी कोशिकाओं को पौष्टिक तत्व नहीं मिल पाएंगे तो उनका विकास नहीं हो पायेगा और इससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाएगी|

  • अत्यधिक दवाइयों का सेवन (Synthetic Drugs):

   बहुत सारी दवाइयां खाना भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करने में सहायता करता है|

  • मद्यपान और धूम्रपान (Drinking and Smoking):

   बहुत सारे लोग जब मद्यपान और धूम्रपान करते हैं तो ये भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करने में सहायक है|

  • प्रदूषित वातावरण (Polluted Environment):

   आज वातावरण में जहाँ कारखानों से धूँआ निकल रहा है, गाड़ियों का धूँआ निकल रहा है और जब ये हमारे शरीर में जाता है तो हमारी साँसों में परेशानी आती है| बहुत सारे लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस तरह से भी कम होती है|

  • कम नींद लेना (Inadequate Sleep):

   यदि हम अच्छे से नींद नहीं लेते हैं तो ये भी एक बहुत बड़ा कारण है हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने का| इसलिए सोना बहुत आवशक है| 7-8 घंटे की नींद लेना बहुत आवशक है| जब हम सोते हैं तो हमारा शरीर अपने आप की मरम्मत करता है|

  • आलस (Inactive People):

   यदि हम आलसी हैं और अधिक शारीरिक श्रम नहीं करते हैं तो ये भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है|

  • पानी की कमी (Dehydration):

   कहते हैं कि मानव शरीर लगभग 70% पानी से बना होता है| इसलिए जब हम पानी अधिक पीते हैं तो विषाक्त पदार्थों (Toxins) को बहार निकालने का काम पानी करता है| जब हम घर में भी सफ़ाई करते हैं तो पानी का उपयोग करते हैं, बर्तन धोने में भी पानी का उपयोग करते हैं क्यूंकि पानी ऐसी वस्तु है जो कीटाणुओं को सोख लेता है और उनको बाहर निकालने में सहायता करता है|

  • कीटनाशक (Pesticides and Insecticides):

   बहुत सारे कीटनाशक हमारे खाने पर छिड़के जाते हैं जिनकी वजह से भी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता निर्बल हो जाती है|

  • विकिरण (Mobile Radiation and Sun Exposure):

   आज के समय में जहाँ हर एक व्यक्ति के पास मोबाइल फ़ोन है वहाँ संचार की बढ़ती आवश्यकताओं को देखते हुए मोबाइल से निकलने वाली विकिरणें बहुत अधिक बढ़ गई हैं| जब हमारा शरीर इन विकिरणों के सम्पर्क में आता है तो मुक्त मूलक (Free Radical) बहुत बनते हैं जिससे भी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता निर्बल होती है|

  • विषाक्त पदार्थों का संचय (Accumulation of Toxins):

   विषाक्त पदार्थों के जमने से हमारे शरीर में बीमारियाँ होती हैं तो या तो हम इन विषाक्त पदार्थों को समाप्त कर दें या फिर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को इतना बढ़ा लें कि ये विषाक्त पदार्थ हमारे शरीर में कुछ असर ही नहीं कर पायें| अब इन विषाक्त पदार्थों को कम करना हमारे हाथ में नहीं है लेकिन हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं|

रोग प्रतिरोधक क्षमता का कवच

आयुर्वेद में सबसे महत्वपूर्ण जानने वाली बात जो है वो है रसायन| रसायन को आयुर्वेद का गौरव कहा जाता है| इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि आयुर्वेद के मुख्यतः दो कार्य होते हैं – एक हमारे शरीर को बीमारियों से बचना और दूसरा बीमार होने की प्रक्रिया को कम करना| हम सब जानते हैं कि आयुर्वेद हमारे यहाँ 5000 वर्षों से भी अधिक समय से सेहत के कल्याण (Wellness) पर ही कार्य कर रहा है| अब ये जो रसायन है इसका सन्धि-विच्छेद होता है रस+आयन| रस का अर्थ होता है तरल या द्रव पदार्थ और आयन का अर्थ होता है मार्ग अर्थात् तरल या द्रव पदार्थ के मार्ग से हम अपनी बीमारी को कैसे ठीक कर सकते हैं ये रसायन हमें बताता है|

आचार्य सुश्रुत का कहना है कि रसायन वो है जो आपकी ऊम्र को बढ़ाये, आपका बुढ़ापा देर से लाये, आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत को अच्छा रखने में सहायता करे और आपको बीमारियों से बचाने में सहायता करे| एक ऐसी वस्तु जो इन सब प्रकार से आपकी सेहत पर काम करे उसे रसायन कहते हैं|

कवचप्राश

अब बात करते हैं कि ऐसी कौनसी वस्तु है जो इन सब प्रकार से हमें सुरक्षा प्रदान कर सकती है| उसका नाम है कवचप्राश| कवचप्राश क्या है और इसका नाम कवचप्राश क्यों है? कवच का अर्थ होता है ढाल और प्राश का अर्थ होता है भोजन| जैसे जैसे हमारी ऊम्र बढ़ती है वैसे वैसे हमारे शरीर का कवच जो है वो निर्बल होने लगता है और जब कवच निर्बल होता है तो हमें बीमारियाँ होने लगती हैं| इसलिए कवचप्राश हमें हर समय ऐसे कीटाणुओं से बचता है जिन्हें हम खुली आँखों से नहीं देख पाते, हमारे शरीर पर हमला करते रहते हैं जिनसे ये हमें पुरे समय हमारे शरीर को कवच प्रदान करता है|

कवचप्राश उन लोगों के लिए बहुत लाभकारी है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत निर्बल है, जिनकी थोड़ी सी प्रतिकूल परिस्तिथि में ही तबियत बिगड़ जाती है| कवचप्राश एक Poly-herbal Formula है| क्या होता है ये? जब बहुत सारी जड़ीबूटियों को मिलाकर एक सूत्र तैयार किया जाता है उसे Poly-herbal Formula कहते हैं| ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि एक जड़ीबूटी दूसरी की क्षमता को बढ़ा देती है| चूंकि इसमें बहुत सारी जड़ीबूटियाँ होती हैं इसलिए इसे किसी भी मौसम में लिया जा सकता है| इसे चाहें तो 12 महीने लगातार खा सकते हैं|

कवचप्राश और च्यवनप्राश – च्यवनप्राश शब्द हजारों वर्ष पुराना शब्द है| तब च्यवन नाम के एक ऋषि थे जिनके लिए अश्विनीकुमारों ने प्राश नामक एक विशेष स्वास्थ्यवर्धक भोजन बनाया था जिसे च्यवनप्राश कहा गया|

अवलेहा – कवचप्राश अवलेहा की अवस्था में आता है| अवलेहा की अवस्था ठोस और तरल के मध्य की अवस्था होती है अर्थात् कवचप्राश चटनी जैसा भोजन है जिसे चाट कर खाया जाता है|

आयुर्वेद हमेशा से ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए कार्य करता है जिससे बीमारियों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है| आयुर्वेद में बहुत सारी जड़ीबूटियां हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायता करती हैं जैसे आँवला, बाला, अश्वगंधा, शतावरी, बिल्व, नागकेसर आदि| इन सारी जड़ीबूटियों को एक कैप्सूल में या सिरप (तरल) में डालना संभव नहीं है इसलिए इन सारी जड़ीबूटियों को लेकर इनका अवलेहा तैयार किया गया जिससे सभी जड़ीबूटियों का लाभ एक ही जगह से लिया जा सकता है|

कवचप्राश में प्रयोग की गईं कुछ प्रमुख जड़ीबूटियाँ

  • आँवला

   जैसा कि हम सभी को विदित है कि आँवला विटामिन C का एक बहुत बड़ा स्रोत है| आँवला उनके लिए बहुत अच्छा है जिन्हें मौसमी बीमारियाँ जल्दी घेर लेती हैं जैसे खांसी, सर्दी, बुख़ार और आँवला रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने में सहायता करता है|

  • बाला

   बाला का मुख्य कार्य हमारी शारीरक क्षमता (stamina) को सुदृढ़ करना, शारीरिक शक्ति (strength) को बढ़ाना और ऊर्जा देना है|

  • अश्वगंधा

   अश्वगंधा हमारे मस्तिष्क की मांसपेशियों को शिथिलता (relaxation) देता है उन्हें आराम देता है और शांति प्रदान करता है|

  • शतावरी

   शतावरी हमारे शरीर में कहीं भी सूजन (swelling) होती है तो उसे कम करता है और उससे लड़ने में सहायता करता है|

  • बिल्व

   बिल्व को कई स्थानों पर बील या बेल भी कहा जाता है| बहुत सारे लोग अपने घरों में इसका शरबत बना के पीते हैं| बिल्व को मस्तिष्क का टॉनिक (शक्तिवर्धक औषधि) भी कहा जाता है| यह मस्तिष्क को ठंडा रखने में सहायता करता है|

  • नागकेसर

   नागकेसर का कार्य फिर से युवा (rejuvenation) आभास कराने वाली उर्जा देना होता है और ये एक बहुत शक्तिशाली ऑक्सीकरणरोधी (Anti-Oxidant) है|

कवचप्राश लेने के लाभ

वैसे तो कवचप्राश लेने के बहुत सारे लाभ हैं किन्तु हम यहाँ पर कुछ मुख्या लाभों के बारे में जानकारी लेंगे|

  • इसे यदि छोटे बच्चों को बचपन से ही दिया जाए अर्थात् यदि 4-5 वर्ष का बच्चा है और कवचप्राश ले रहा है तो मौसमी बीमारियों से बच सकता है| जैसा कि हम सब जानते हैं कि लगभग 15 वर्ष से छोटे बच्चों के कफ़ अधिक बनता है और यदि वो कोई ऐसा खाना खाएं जो कफ़ को बढ़ावा देता है तो उनको सर्दी, खांसी, बुख़ार जैसी परेशानियाँ जल्दी घेर लेती हैं|
  • ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाकर हमारे पूरे शरीर को रोगों से बचाता है, पूरे शरीर को एक कवच की भांति सुरक्षित रखता है|
  • ये शरीर में लगभग सारे अंगों और उनकी कार्यप्रणाली पर कार्य करता है जैसे मस्तिष्क, यकृत (Liver), गुर्दे (Kidney), पाचन तंत्र, प्रजनन प्रणाली आदि| यदि किसी को सांस की समस्या, सीने में दर्द, गले में खराश, सरदर्द, बुख़ार, सर्दी, खांसी आदि है तो कवचप्राश लेने से इन समस्याओं से बचे रह सकते हैं|
  • ये तनाव के लिए एक बहुत ही बढ़िया औषधि है|
  • जो लोग अधिक व्यायाम करते हैं और बाज़ार की कोई शक्तिवर्धक दवाई ले रहे हैं तो उसके बहुत सारे दुष्प्रभाव होते हैं| कवचप्राश प्राकृतिक रूप से शारीरक क्षमता (stamina) को सुदृढ़ करता और शारीरिक शक्ति (strength) को बढ़ाता है|
कवचप्राश एक पूर्ण रूप से आयुर्वेदिक आहार है जिसका कार्य हमारे शरीर की रक्षा करना है| आज के समय में जहाँ शुद्ध आहार पाना बहुत मुश्किल होता है वहां कवचप्राश हमें बिल्कुल शुद्ध आहार प्रदान करता है| इसकी शुद्धता का प्रमाण है कि इसे भारत सरकार के आयुष मन्त्रालय से आयुष प्रीमियम सर्टिफिकेट मिला है| इसके बारे में अधिक जानने के लिए हमसे सम्पर्क करें और ऐसे ही अन्य आयुर्वेदिक आहार और उत्पादों के बारे में सही एवं प्रमाणित जानकारी पाने के लिए हमारे इस Blog को सब्सक्राइब करें| धन्यवाद|

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